International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
बाह्य जगत पर बौद्ध विज्ञानवाद की दृष्टि
1 Author(s): PINKU KUMAR
Vol - 11, Issue- 7 , Page(s) : 323 - 329 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
बौद्ध दर्शन में ‘वस्तु सत्ता’ के सत् या असत् के महत्त्वपूर्ण प्रश्न को लेकर इसे चार सम्प्रदायों में बांटा गया है; वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक। स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म पदार्थ की ओर विवेचन करने में पहला मत उन दार्शनिकों का है जो बाह्य तथा आभ्यन्तर धर्मों को स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार करते हैं। जिन वस्तुओं को लेकर हमारा जीवन है उनकी सत्यता स्वयं स्फुट है। इस प्रकार बाह्यार्थ को प्रत्यक्ष रूपेण सत्य मानने वाले बौद्धों का प्रथम सम्प्रदाय ‘वैभाषिकों’ का है। दूसरा मत सौत्रान्तिकों का है उनका कहना है कि बाह्य वस्तु का हमें प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। जब समग्र पदार्थ क्षणिक है, तब किसी भी वस्तु के स्वरूप का प्रत्यक्ष ज्ञान सम्भव नहीं। प्रत्यक्ष होते ही पदार्थों के नील, पीत आदि का चित्र चित्त के पट पर खिंच जाते हैं। जिस प्रकार दर्पण में प्रतिबिम्ब को देखकर बिम्ब की सत्ता का हम अनुमान करतें हैं, उसी प्रकार चित्त-पट के इन प्रतिबिम्बों से हमें प्रतीत होता है कि बाह्य अर्थ की भी सत्ता अवश्य है। अतः बाह्य अर्थ की सत्ता अनुमान के ऊपर अवलम्बित है। इसलिए इस सम्प्रदाय को बाह्यार्थानुमेयवाद कहा जाता है।