( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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श्री अरबिन्द एवं आचार्य रजनीश के समाजिक, चिंतन पर एक आध्यात्मिक अध्ययन

    2 Author(s):  SHALINI RANI DAS, DR. ASHOK KUMAR

Vol -  3, Issue- 3 ,         Page(s) : 194 - 198  (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

व्यक्ति की चिन्तनधारा व्यक्ति के व्यक्तित्व, समय एवं परिस्थितियों के अनुकूल होती है। श्री अरविन्द एवं आचार्य रजनीश की चिन्तन-धाराऐं भी ऐसी ही हैं। 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्वतन्त्रता के पूर्व जब व्यक्ति गुलामी में था और स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ रहा था, तब समाज की स्थिति में अर्थ, शिक्षा आदि जीर्ण अवस्था में था। आध्यात्मिकता की ओट में बहुधा पलायनवाद, निराशावाद, मायावाद और हठवाद इत्यादि एकांगी दृष्टिकोण पल रहे थे, मानव जाति की सृजनशक्ति तकनीकी बोझ के नीचे क्रमशः समाप्त होती जा रही थी। तकनीकी में प्रगति के साथ-साथ संस्कृति में मनुष्यों की प्रगति नही हो पा रही थी, मानव के शक्ति की प्रकृति उसके बाहर की ओर उसकी प्रगति अन्तर्विरोध से परिपूर्ण थी, वैज्ञानिक अधर्मवाद, मृत्तप्रायः दर्शन, साम्राज्यवाद, नागरीकरण, अन्तर्राष्ट-प्रतिद्धन्द्धिता, प्रजातिवाद और वर्ग संघर्ष दिखलाई पड़ रहे थे।

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