( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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’कौटिल्य’ का ग्राम प्रशासन

    1 Author(s):  DR. MANISH KUMAR

Vol -  11, Issue- 7 ,         Page(s) : 315 - 317  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्रस्तुत आलेख में मौर्यकालीन ग्राम-प्रशासन का उल्लेख कौटिल्य द्वारा रचित ’अर्थशास्त्र’ के आधार पर उल्लिखित है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित ग्रामीण प्रशासन की रूप रेखा निश्चित रूप से आदर्शमूलक कहीं जा सकती है। ग्रामों में सहयोग और सद्भाव का वातावरण पैदा किया जाता था। कई दृष्टियों से ये गाँव स्वायत्त और स्वावलम्बी थे। इन्हीं स्वरूपों को देखते हुए सर चार्ल्स मेडकॉफ ने कहा कि प्राचीन भारत के ये ग्रामीण समुदाय स्वायत्त और स्वावलम्बी थे और लघु गणतंत्रों के रूप में काम करते थे। कौटिल्य के अनुसार ग्रामीण प्रशासन के अन्तर्गत लोकवाणी का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान था। मौर्यकाल में ग्रामीण प्रशासन राज्य के प्रशासन का महत्वपूर्ण अंग होता था। ग्राम सम्पूर्ण राज्य की रीढ़ माना जाता था। इस आलेख में मेरे द्वारा उपर्युक्त तथ्यों का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है।

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