( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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इक्कीसवीं शताब्दी और प्रेमचंद की कहानियों की प्रासंगिकता

    1 Author(s):  DR.PRAMOD KUMAR YADAV

Vol -  11, Issue- 8 ,         Page(s) : 134 - 138  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

इस आलेख में इक्कीसवीं शताब्दी की कसौटी पर प्रेमचंद की कहानियों की प्रासंगिकता पर चर्चा की गई है | हिन्दी साहित्य के विभिन्न महत्वपूर्ण अंगों में कहानी भी एक है जो कि मनोरंजन के अतिरिक्त पाठक को स्वस्थ विचारपूर्ण सामाग्री प्रदान करती है । आज के अत्यंत व्यस्त जीवन में थोड़े ही समय में थके मन को पूर्ण विश्रान्ति देने वाली यह कहानी कला की दृष्टि से निरन्तर अपनी विकास यात्रा में अग्रणी है । प्रेमचंद का नाम हिन्दी कानी के साथ इस प्रकार जुड़ गया है कि एक का नाम लेते ही दूसरे का स्मरण हो जाता है, हिन्दी कहानी की विकास-यात्रा के ऐतिहासिक पड़ावों में मुंशी जी का युग भी एक है । प्रेमचंद ने अपने जीवन काल मैं कई अदभूत कृतियां लिखी हैं । तब से लेकर आज तक हिन्दी साहित्य में ना ही उनके जैसा कोई हुआ है और ना ही कोई और होगा।

1. मग्गीरवार, डॉ. सुनंदा(2007);प्रेमचंद के साहित्य में व्यक्त जीवन दर्शन, कानपुर:विनय  प्रकाशन
2. डा0 श्रीमती शीला गुप्त, (1982) प्रेमचंद और उनका साहित्य प्रा०लि0, इलाहाबाद, साहित्य भवन
3. डॉ सत्येंद्र (2008), प्रेमचंद और उनकी कहानी कला, भारतीय रत्न भंडार, आगरा
4. डा. रामदीन गुप्त (1961)प्रेमचन्द और गांधीवाद, हिंदी साहित्य संसार, पटना
5. राय,रमाकांत(2014);हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों के बहाने,कोलकाता: लोकभारती प्रकाशन
6. डॉ प्रेम नारायण टंडन, (1941) प्रेमचन्द और ग्राम समस्या रामप्रसाद एंड संस,आगरा
7. अमृतराय (प्र०सं०1962)प्रेमचंद : कलम का सिपाही -, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद
8. हंसराज रहबर (हि0स0 1962)प्रेमचंद कला और कृतित्व, आत्माराम एंड संस, दिल्ली
9. नरेन्द्र कोहली (1985)प्रेमचंद के साहित्य सिद्धांत अ०, अशोक प्रकाशन, दिल्ली
10. डॉ कमल किशोर गोयनका (प्र0सं0 1974)प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प विधान, सरस्वती प्रेस, दिल्ली,.
11. डॉ प्रेम नारायण टण्डन(1942),प्रेमचंद की कृतियों और कला, पब्लिशिंगहाउस, प्रयाग
पत्र-पत्रिकाएँ  
           1.धर्मयुग (पत्रिका),1 मार्च 1992
2.साप्ताहिक हिंदुस्तान (पत्रिका),5 अप्रैल 1992
3.वागर्थ,मार्च-2008 संपादक-एकांत श्रीवास्तव,अंक 152  

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