International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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शास्त्र के सिद्धान्तों की अध्यापन की विधि : न्याय दर्षन में पंचावयव अनुमान
2 Author(s): DEEPAK UDAY, DR. RAJKUMARI JAIN
Vol - 11, Issue- 7 , Page(s) : 212 - 215 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
न्याय दर्शन के अनुसार शास्त्र के सिद्धान्तों के अध्यापन की सम्यक् विधि पंचावयव अनुमान है। जैसा कि हम द्वितीय अध्याय में देख चुके हैं प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, और निगमन यह पाँचों अवयव समूहापेक्षया अवयव नामक एक स्वतंत्र पदार्थ है। इसमें प्रतिज्ञा - शब्द प्रमाण, हेतु - अनुमान, उदाहरण - प्रत्यक्ष तथा उपनय - उपमान प्रमाण है। यह प्रतिज्ञादि अवयव परस्पर सम्बद्ध होकर एक दूसरे का प्रतिसंधान करते हुए (एक दूसरे के विषय को सत्यापित करते कर सिद्ध करते हुए) निगमन में तत्त्व का ज्ञान कराते हैं। प्रश्न उठता है कि प्रतिज्ञा को शब्द प्रमाण क्यों कहा गया है? साध्य अर्थात जिसे सिद्ध किया जाना है उसका निर्देशन करने वाले वाक्य को प्रतिज्ञा कहा जाता है। लेकिन आप्त पुरुष के वचनों की सत्यता तो सुनिश्चित है फिर पंचावयव अनुमान में उनकी सत्यता को सिद्ध करने की प्रतिज्ञा क्यों की जा रही है? इसके उत्तर में वात्स्यायन कहते हैं कि ‘‘इस अवयव समुदाय में प्रतिज्ञा शब्द प्रमाण है।