International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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छायावादी काव्य में राष्ट्रीय-चेतना
1 Author(s): DR. SADHNA TOMAR
Vol - 11, Issue- 5 , Page(s) : 192 - 197 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
काव्य कवि की अनुभूतियों का भण्डार होता है। कवि जब यह अनुभव करता है कि उसके हृदय में जो अनुभूतियाँ हैं उनसे पाठक या श्रोता भी उस अनुभूति को अनुभव करें, उसकी भावनाओं से उद्वेलित हो, तब काव्य का जन्म होता है। कवि की वाणी कविता के रूप में अवतीर्ण होती है। 1920 से 1936 तक छायावादी युग है कुछ विद्वानों ने 1940 तक भी छायावादी युग माना है। छायावाद एक विशेष प्रकार का भावात्मक दृष्टिकोण है जहाँ प्रस्तुत के माध्यम से अप्रस्तुत कथन की अभिव्यंजना होती है। महादेवी वर्मा का मानना है कि प्रकृति के बीच जीवन के उद्गीत छायावाद हैं। शुक्ल जी के अनुसार ‘छायावाद शब्द ेका अर्थ दो अर्थों में समझना चाहिए- एक तो रहस्यवाद के अर्थ में जहाँ उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता है अर्थात् जहाँ कवि उस अज्ञात और अनन्त प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यन्त चित्रमयी भाषा में अनेक प्रकार से व्यंजना करता है।....छायावाद का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में हैं