( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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जनजातीय शिक्षा एवं विकास के आयाम

    1 Author(s):  NANDNI KUMARI

Vol -  8, Issue- 11 ,         Page(s) : 253 - 259  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मनुष्य एक प्रगतिशील प्राणी है। वह सदैव आगे बढाना चाहता है ऊॅचा उठना चाहता है। वह अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त करना चाहता है। यह सब तभी सम्भव है जब वह शिक्षित हो। मनुष्य को इस स्थिति तक पहुचने के लिए शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में शिक्षा को विशेष स्थान दिया गया है। प्राचीन समाज में सभी लोगों को शिक्षा को ग्रहण करने का अधिकार नहीं था। लेकिन शिक्षा ही मनुष्य के पथ- प्रदर्शन एवं जीवन के मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति का साधन थी। प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था के अनुसार शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान था। समाज के बहुत से लोग शिक्षा से वंचित थे जो समाज में पिछडेपन की श्रेणी में आ गये जो जाति वर्ग में है जो जंगलों, नदियों के किनारे, पहाड़ों में निवास करने लगे और आगे चलकर आदिवासी या वनवासी कहलाए।

Gautam vind : Education to bribal chidren in India and the issue of Medium of intruction - a janshla experience . 

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