( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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वैदिक वाङ्‌मय में पर्यावरण संरक्षण

    1 Author(s):  DR. VED MITRA ARYA

Vol -  4, Issue- 2 ,         Page(s) : 590 - 595  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

वेद मानवमात्र के लिए प्रकाश-स्तभ हैं, वेदों ने ही विश्व में सर्वप्रथम ज्ञान और विज्ञान का प्रसार किया है। वेदों की ज्योति विश्वबन्धुत्व, विश्वकल्याण और विश्वसमृद्धि की पे्ररक है।

  1.    प्रवाहितं ब्राह्मतोयं क्षात्रातोयं सरोवरम्। वूफपोदकं वैश्यतोयं गृहभाण्डेषु शूद्रवत्।।
  2.    )चा वुफम्भ्यध् िहितात्र्विज्येन प्रेषिता। अथर्वú।। 11.3.14
  3.    पवित्रो स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्थ रश्मिभिः। देवी रापो{ग्रेगुवो{ग्रेपुवो{ग्रइममद्य यज्ञं नयतागे्र यज्ञपतिं सुधतुं यज्ञपतिं देवयुवम्।। यजुú 1.12
  4.    भूम्यां देवेभ्या ददति यज्ञं हव्यमरंवृफतम्। भूम्यां मनुष्या जीवन्ति स्वध्यान्नेन मत्र्याः। सानो भूमिः प्राणमायुर्दधतु जरदष्टिं मा पृथिवी वृफणोतु।। अथर्वú 12.1.22
  5.    समिधग्निं दुवस्यता घृतैर्बोध्यतातिथिम्। अस्मिन् हव्या जुहोतन। यजु. 3/1   वात आ वातु भेषजं शुभं मयोभु नो हृदे प्रण आयूंषि तारिषत्। ). 10.186.1
  6.    अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
  7. यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञःकर्मसमुवः।। गीता-3.14 

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