( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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राहुल सांकृत्यायन की दृष्टि में नालन्दा

    1 Author(s):  DR. SHASHIKANT

Vol -  11, Issue- 1 ,         Page(s) : 286 - 289  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

प्राचीन भारत के इतिहास में ‘नालंदा महाविहार’ बौद्ध विद्या का प्रमुख केंद्र था। ”नालंदा का महत्त्व केवल बौद्ध-सम्प्रदाय पर ही निर्भर रहा है। हिन्दू (ब्राह्मण-धर्मानुयायी-रचित) धर्मानुयायी ग्रन्थों में इसका नामोल्लेख भी नहीं है। ........नालन्दा जैसा स्थान यदि फिर इस देश में स्थापित हों, तो अहोभाग्य! आर्कियोलाजिकल डिपार्टमेंट ने इसका पुनरुत्थान करने एवम् उत्तमोत्तम भग्नावशेष निकाल करके एक अति श्रेयस्कर कार्य किया है।“1 डाॅ हीरानन्द शास्त्री के उक्त कथनों से यह स्पष्ट होता है कि ‘नालन्दा महाविहार’ के पुर्नउत्थान के लिए तत्कालीन समय में कुछ विद्वान कितने उत्सुक थे। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने भी महान बौद्ध विद्या केन्द्र ‘नालन्दा महाविहार’ के उद्धार का स्वप्न देखा था। तिब्बत से लाए 34, 35 चित्रों को पेरिस प्रदर्शनी में बेंच कर कुछ पैसे उपलब्ध हो जाने पर, नालन्दा में जमीन खरीदकर ‘नालन्दा’ का पुर्नउद्धार का विचार उनके मन में आया। लेकिन पेरिस में जब उन चित्रों का महत्व राहुल जी को ज्ञात हुआ तो उसे बेंचने का ख्याल मन से निकाल दिया। उन्होंने लिखा - ”पहिले मैं नहीं समझता था, कि वह इतने सुन्दर और महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन यहाँ आने पर मुझे उनका मूल्य मालूम हुआ। कई वर्षों से नालन्दा के पुनरुद्धार का मेरे दिमाग में खब्त था। लंका में रहते मैं यह भी ख्याल कर रहा था, कि अगर सारे चित्र 30, 35 हजार पर बिक जाएँ तो उस रुपये से नालन्दा में जमीन खरीद ली जाय। यहाँ आने पर जब मुझे चित्रों का महत्त्व मालूम हुआ, तो बेंचने का ख्याल छोड़ दिया। किस जगह पर इन्हें सुरक्षित तौर से रखा जा सकता है, इस पर विचार करते ही मुझे ख्याल आया कि पटना म्यूजियम ही इसके लिए उपयुक्त स्थान होगा। 28 अक्टूबर को मैंने म्यूजियम के सभापति जायसवाल जी को पत्र लिखा, ‘मैं अपने तिब्बती चित्रपट को म्यूजियम को देने के लिए तैयार हूँ। किन्तु नालन्दा में यदि कोई सुरक्षित स्थान बन गया, तो वह वहाँ चला जायेगा।

1. गंगा, सम्पादक - रामगोविन्द त्रिवेदी, गंगा कार्यालय कृष्णगढ़, सुल्तानगंज, मार्च से दिसम्बर (जिल्द में) 1933 ई॰ (‘नालन्दा का विश्वविद्यालय’ - डाॅ॰हीरानन्द शास्त्री के लेख)
2. मेरी जीवन-यात्रा-2, राहुल सांकृत्यायन, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी आवृत्ति 2014 ई॰, पृ॰सं॰  102
3. वही, पृ॰ सं॰ - 116
4. ‘नालन्दा’ (द्विमासिक पत्रिका), निर्देशक-भिक्षु जगदीश काश्यप, प्रधान सम्पादक-योगेन्द्र श्रीवास्तव {नव नालन्दा महाविहार के शिलान्यास के अवसर पर राष्ट्रपति डाॅ॰ राजेन्द्र प्रसार के भाषण से} पृ॰सं॰ 10
5. मेरी जीवन-यात्रा-2, राहुल सांकृत्यायन, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरी आवृत्ति 2014 ई॰, पृ॰सं॰  56

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