International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
गाँधी के नैतिक दर्शन की शिक्षा प्रणाली में समसामयिक प्रासंगिकता
2 Author(s): DR. LALIT MOHAN SINGH ,DR. DEEPA JALAL
Vol - 11, Issue- 3 , Page(s) : 11 - 17 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
गाँधी जी का मानना है कि सत्य ही मेरे लिए सर्वोच्च सिद्धान्त है जिसमें अन्य अनेक सिद्धान्त समाविष्ट है। यह सत्य केवल वाणी का सत्य नहीं है, अपितु विचार का भी है और हमारी धारणा का सापेक्ष सत्य ही नहीं अपितु निरपेक्ष सत्य, सनातन सिद्धान्त, अर्थात् ईश्वर है। एक बात और मेरे मन में पक्की होती जा रही है कि जो कुछ मेरे लिए सम्भव है, वह एक बच्चे के लिए भी सम्भव है। यह बात मैं ठोस कारणों के आधार पर कह रहा हूँ। सत्य की खोज के साधन जितने कठिन हैं, उतने ही आसान भी हैं। अहंकारी व्यक्ति को वे काफी कठिन लग सकते हैं और अबोध शिशु को पर्याप्त सुख। सत्य एक विशाल वृक्ष की तरह है, आप जितना उसका पोषण करोगे उससे भी ज्यादा फल यह देगा। सत्य की खान को जितना ही गहरा खोदोगे, सेवा के नये से नये मार्गों के रूप में यह उतने ही अधिक हीरे जवाहरात देगा। (एन आटोबायोग्राफी, आर द स्टोरी आॅफ मइ एक्परिमेंट विद ट्रुथ, 1959)।