( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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प्राचीन भारत में महिला वैज्ञानिक: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

    2 Author(s):  DR ANURADHA GUSAIN, DR. M.S GUSAIN

Vol -  11, Issue- 1 ,         Page(s) : 240 - 246  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि सभ्यता के विकास से लेकर भारतीय समाज कई परिवर्तनों से गुजरता हुआ आज के वैज्ञानिक युग तक पहुँचा है। यह मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति या वैज्ञानिक सोच ही थी जिसके कारण वह एक सभ्य मानव बना और साथ ही समाज का निर्माण कर सका। स्त्री व पुरूष किसी भी समाज के दो मूल स्तम्भ रहे हैं और समाज का जो विकसित स्वरूप आज हमें दिखाई पड़ता है वह इन दोनो के ही संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। लेकिन जब समाज में किसी भी नवीन आविष्कार या व्यवस्था के लिए श्रेय देने का प्रश्न आता है तो अधिकांशतः श्रेय पुरूष को ही दिया जाता है। चूँकि भारतीय समाज प्रारम्भ से ही पुरूष प्रधान समाज रहा है अतः स्त्रियों द्वारा किये गये कार्यांे को कभी अधिक महत्व नहीं दिया गया।वैदिक साहित्य में ‘अपाला‘, ‘घोषा‘, ‘लोपा‘, ‘मुद्रा‘ आदि कुछ महिलाओं का उल्लेख अवश्य मिलता है किन्तु इनका उल्लेख केवल शिक्षित व शास्त्रों की ज्ञाता महिला के ही रूप में किया गया है। जबकि वास्तव में देखा जाय तो प्राचीन काल से ही महिलाए पुरूषों के साथ प्रत्येक कार्य में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलती रही है फिर चाहे वह युद्ध का क्षेत्र हो या कृषि कार्य। उन्होने प्रत्येक कार्य में अपनी बुद्धिमता का प्रमाण दिया है। प्रस्तुत शोध पत्र में प्राचीन भारतीय महिलाओं की इसी वैज्ञानिक सोच को उजागर करने का प्रयास किया गया है।

1  भारत की संस्कृति तथा कला , के.सी. श्रीवास्तव, प्रकाशक यूनाइटेड बुक डिपो, इलाहाबाद
2  प्राचीन भारत का सामाजिक सांस्कृतिक और भौगोलिक अध्ययन, डा0 कैलाश चन्द जैन, श्री पब्लिशिंग  हाउस , नई दिल्ली
3  नारीवाद, वी. एन. सिंह और जनमेजय सिंह, रावत पब्लिकेशन्स
4  भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास, आर. शरण, राधा पब्लिकेशन्स नई दिल्ली-110002
5  भारतीय इतिहास में महिलाएं, खुराना एवं चैहान, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, आगरा
6  कौटिल्य का अर्थशास्त्र, अनु0 प्राणनाथ विद्यालंकार, 1923 प्र0 मोतीलाल बनारसीदास, सैद मिट्ठा बाजार, लाहौर
7  श्री ने़त्र पाण्डे, राजपूतों का प्रारम्भिक इतिहास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद
8  भगवती प्रसाद पांथरी, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, प्रकाशन गृह, काशी विद्यापीठ, बनारस, 1956
9  वृन्दा करात, जीना है तो लड़ना होगा, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, 2008
10  उमा चक्रवर्ती, नारीवादी राजनीति (स. साधना आर्य, आदि) हिन्दी माध्यम कार्यन्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, 2001
11  डा0 वी. एन. सिंह, आधुनिकता एवं नारी सशक्तिकरण, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर, नई दिल्ली, 2010
12  रूपायन, अमर उजाला, मार्च 2011
13  दैनिक जागरण, 13 अक्टूबर 2010

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