International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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गाँधी दर्शन की प्राथमिक शिक्षा में प्रासंगिकता: एक अवलोकन
1 Author(s): DR. LALIT MOHAN SINGH
Vol - 11, Issue- 1 , Page(s) : 87 - 92 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
शिक्षा के क्षेत्र में गाँधी जी की विरासत अत्यन्त समृद्ध है। उनकी बुनियादी शिक्षा वास्तव में सबके लिए शिक्षा का दूसरा रूप है। यह केवल साक्षरता नहीं है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा का चहुँमुखी विकास है। शिक्षा आधारित शिक्षा की उनकी अवधारणा बेरोजगारी के खिलाफ एक बीमा सुरक्षा है शिल्प केन्द्रित शिक्षा की उनकी अवधारणा अहिंसा के सिद्धान्त पर आधारित है, जिसमें प्रत्येक सीखने वाले की निजता का सम्मान किया जाता है और जिसमें श्रम की गरिमा तथा सामूहिक कार्य की शिक्षा दी जाती है। इसे उन्होंने नई तालीम या वर्धा शिक्षा योजना का नाम दिया। 1936 में उन्होंने हिन्दुस्तानी तालीम संघ की स्थापना की। गाँधी जी ने प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण और निरक्षरता के बारे में उनका कहना था कि यह कलंक है। गाँधी जी के लिए शिक्षा का अर्थ है, बच्चे को यह सिखाना कि वह दिमाग और ज्ञानेन्द्रियों का इस्तेमाल कैसे करें, यानि वह हाथ, पैर व अन्य अंगों, नाक, कान और अन्य इन्द्रियों से कैसे सीखे। उनके लिए शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसी अहिंसक, शोषण मुक्त, मानवीय और सामाजिक व्यवस्था कायम करना है, जिनमें मन, शरीर, और आत्मा का चहुँमुखी विकास हो सके। गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बुनियादी शिक्षा एक क्रान्तिकारी अवधारणा है, जिसमें विचारशील हाथों के सृजन की बात पर जोर दिया गया है। बशर्तें कि बुनियादी शिक्षा की उनकी धारणा पर अमल नहीं किया गया। किन्तु राष्ट्र को आत्म निर्भर बनाने वाली समग्र शिक्षा प्रणाली में उसके महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती।