International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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गाँधी दर्शन की प्रासंगिकता: इतिहास में उनका स्थान
1 Author(s): DR. LALIT MOHAN SINGH
Vol - 10, Issue- 12 , Page(s) : 141 - 146 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
किसी व्यक्ति की वास्तविक पहचान इस बात से स्पष्ट होती है कि उसे उत्कृष्टता की कितनी तलाश है। इससे यह पता चलता है कि वह दूसरों के प्रति न्याय करने और दूसरों से न्याय पाने के मामले में कितना तर्कसंगत और मानवीय है। गाँधी जी उत्कृष्टता की तलाश के अपने लक्ष्य में इससे भी एक कदम और आगे हैं क्योंकि वे उत्कृष्टता को ईश्वर के संदर्भ में देखते हैं और उसे धारण करते हैं। गाँधी जी अपनी आध्यामिकता का आधार अहिंसा को मानते हैं, जो प्रेम तथा निर्भिकता को प्रोत्साहित करती है। उनका कहना है कि अगर मैं अहिंसा का पुजारी हूँ तो मैं अपने दुश्मन को अवश्य प्रेम करता हूँ। गलत करने वाला व्यक्ति मेरा दुश्मन या मेरे लिए अजनबी हो तब भी मैं वही नियम अवश्य लागू करूँगा जो गलत करने वाले अपने पिता या पुत्र के संदर्भ में लागू करता हूँ। इस सक्रिय अहिंसा में सत्य और निर्भीकता का समावेश अनिवार्य है, क्यांेकि व्यक्ति अपने प्रियजन को धोखा नहीं दे सकता, वह उसे डरा धमका नहीं सकता। अतः व्यक्ति को स्वयं में निर्भीक अवश्य होना चाहिए। जो व्यक्ति अहिंसा का पालन नहीं कर सकता वह उसी समय कायर हो जाता है।