( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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हिंदी दीर्घ कविता : गतिशील यथार्थ की वस्तुनिष्ठ अभिव्यक्ति

    1 Author(s):  SANJYOTI M. SANAP

Vol -  9, Issue- 10 ,         Page(s) : 166 - 170  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

हिंदी साहित्य में नूतन काव्यशिल्प की अवधारणा का सूत्रपात करनेवाली दीर्घ कविता आधुनिक जीवन की यथार्थ स्थितियों से निःसृत निरंतर परिवर्तित होनेवाली वर्जनाओं और उनसे उत्पन्न बहुआयामी सर्जनात्मक तनाव की एक ऐसी तात्विक परिणति है, जिसमें अनिवार्यतः वैचारिक अपरिहार्यता के कारण रचनाकार अनुभूत सत्य और अपनी जागृत संवेदना को विचार की ठोस भूमि पर तराशता है तथा वर्तमान गतिशील यथार्थ को मार्मिक और वस्तुनिष्ठ रूप में अभिव्यक्त करता है।

  ‘अलविदा’ लंबी कविताएँ, कवि विजयदेव नारायण साही, उद्धृत सं. डॉ. नरेंद्र मोहन,
पृष्ठ संख्या 182
  ‘एक साहित्यिक की डायरी’, ले. गजानन माधव मुक्तिबोध, उद्धृत ‘हिंदी की लंबी कविताओं का आलोचना-पक्ष’, ले. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पृष्ठ संख्या 8
  ‘चाँद का मुह टेढा है’, कवि गजानन माधव मुक्तिबोध, पृष्ठ संख्या 299
  ‘रेगिस्तान का सफर’, डॉ. हरिवंश राय ‘बच्चन’, पृष्ठ संख्या 78
  ‘विश्वभारती’ (त्रैमासिक) : जुलाई-सितंबर 1968, सं श्री सुधिरंजन दास एवं अन्य पृष्ठ संख्या 189
  ‘अनामिका’, कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, पृष्ठ संख्या 118
  ‘बुद्ध और नाचघर’, कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’, पृष्ठ संख्या 172
  ‘प्रतिनिधि कविताएँ’, कवि शमशेर बहादुर सिंह, पृष्ठ संख्या 120-123

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