( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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जेंडर दृष्टिकोण से पाठ्य पुस्तकीय रेखाचित्रों का विषय-वस्तु विश्लेषण

    2 Author(s):  DEWASHISH VERMA , DR. SANJAY

Vol -  10, Issue- 10 ,         Page(s) : 251 - 260  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मानव समाज में किसी घटना को विशुद्धजैविक कहना गलत होगा। किसी शिशु के जन्म लेने के तुरन्त बाद उसके सामाजिक भूमिकाओं की रचना शुरू हो जाती है, और इस प्रक्रिया में परिवार से बाद विद्यालय बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । मानव के समाजीकरण की प्रक्रिया को विद्यालय दो प्रकार से अंजाम देते हैं। पाँच वर्ष की आयु तक आते-आते बच्चे अपने घर-परिवार एवं आस-पास से अपनी भूमिकाओं के बारे में जानना शुरू कर देते हैं। मगर किसी सार्वजनिक संस्था से उनका प्रथम औपचारिक साक्षात्कार विद्यालय के रूप में होता है। विद्यालयों का घोषित उद्देश्य बच्चों को शिक्षित करना तथा उन्हें आदर्श नागरिक के रूप में विकसित करना है। मगर सामाजिक संस्था के रूप में विद्यालय का कार्य भावी पीढ़ी का सामाजीकरण करना भी है। चूंकि प्रत्येक शिक्षा व्यवस्था का एक सन्दर्भ होता है और पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था व विचारधारा शिक्षा व्यवस्था को भी गहरे रूप में प्रभावित करती है। विद्यालय लैंगिक पहचान के निर्माण के लिये महत्वपूर्ण स्थान है। दुनिया के विभिन्न विद्धानों का यह मानना है कि है समाज, चरित्र व विचारधारा के निर्माण में विद्यालयी शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। पाठ्य पुस्तकें केवल ज्ञान का वैधानिकरण ही नहीं करती बल्कि उसे बालमन में गहराई से स्थापित भी करती है। विद्यालय लैंगिक पहचान के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यालय जीवन के अनुभव (पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री (छायाचित्र, लेख), शिक्षण विधि) इस रूप में व्यवस्थित किये जाते हैं कि उनका समाज के व्यापक जेंडर मानकों से विरोध न होकर अनुरूपता रहती है।

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