( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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हिन्दू कोड बिल से समान नागरिक संहिता तक

    1 Author(s):  MANJU

Vol -  9, Issue- 12 ,         Page(s) : 194 - 211  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारतीय संविधन की प्रस्तावना, जहां प्रत्येक नागरिक को एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का संकल्प प्रस्तुत करती है ताकि स्वतंत्राता समानता व न्याय जैसे आदर्शों को स्थापित किया जा सके, वही राज्य के नीति-निर्देशक सि(ान्त उन आदर्शों को मूर्त रूप प्रदान करने हेतू दिशा-निर्देश का काम करते है। भारतीय संविधन के अध्याय तीन में निहित मौलिक अध्किारों में स्वतंत्राता का अध्किार व धर्मिक व्यवहार हेतू प्रदान किया गया धर्मिक स्वतंत्राता का अध्किार यंू तो व्यक्ति विकास को सशक्त करने के लिये दिये गये हैं, लेकिन पिफर भी कभी-कभी ये प्रावधन आपस में विरोधभासी प्रतीत होते हैं विशेषकर लैंगिक न्यायिक मुद्दों के संदर्भ में।

1 आस्टिन, ग्रेनविल ;1966द्ध द इंडियन कान्सटीट्यूशनः क्रानर स्टान आपफ ए नेशन, आक्सपफोर्ड क्लेरडन प्रेस
2 बासु, डी.डी., ;1994द्ध इन्ट्रोडक्टशन टू दी कान्सटीट्यूशन आपफ इंडिया
3 बेसंट, एनी., ;1909द्ध द रिलिजियस प्रोब्लस इन इंडिया
4 डैरट, जे.डी.एम., ;1968द्ध इन इन्ट्रोडक्शन टू लीगल सिस्टम, लंदन
5 गनी, एच.ए., ;1988द्ध रिपर्फोम आॅपफ मुस्लिम पसर्नल लाॅ, दीप एंड दीप, न्यू दिल्ली
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आर्टिकल
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