International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मंगेलश डबराल के काव्य में संवेदना-पक्ष (सन् 1990 के पश्चात की कविता के संदर्भ में)
1 Author(s): DR. MAMTA
Vol - 10, Issue- 10 , Page(s) : 210 - 215 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
मंगलेश डबराल जी आज हमारे मध्य वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार, संपादक, अनुवादक एवं विचारक के रूप में उपस्थित हैं। ‘पहाड पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज भी एक जगह है’, ‘नये युग का शत्रु’, ‘कवि ने कहा’, इत्यादि अनेक महत्वपूर्णं काव्य-संग्रह में कवि ने समाज व्यवस्था का आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया है। कवि समाज के सभी पक्षों के प्रति संवेदन-शील हैं। जन्मतः पहाड़ी होने के कारण ग्रामीण-जनजीवन सदैव उनकी कविताओं में गूँजता रहा है। कवि की कविताओं का प्रमुख स्वर साम्यवादी है। उन्होंने दलितों, वंचितांे, किसानो, मजदूरों, स्त्रियों, इत्यादि की दबी-कुुचली आवाज बुलन्द करके साम्यवादी समाज की स्थापना करने की चेेष्टा की है। समकालीन परिप्रेक्ष्य में मंगलेश डबराल को निम्न वर्ग एवं निम्नमध्यम वर्ग का प्रतिनिधि कवि माना जा सकता है। वर्तमान त्रासद मनोदशा से ग्रस्त समाज के प्रति कवि सदैव संवेदनशील रहे हैं। सही मायने में कहा जा सकता है कि मंगेलश डबराल जनवादी कवि हैं।