( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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चित्तवृत्ति निरोधरूप अभ्यास एवं वैराग्य का वर्णन (योगवार्त्तिक के विशेष संदर्भ में)

    1 Author(s):  SANDEEP KUMAR

Vol -  10, Issue- 8 ,         Page(s) : 253 - 260  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है, एवं यह चित्तवृत्ति-निरोधरूप योग ही कैवल्य प्राप्ति कराता है । पतञ्जलि ने चित्तवृत्ति निरोध के उपाय के रूप में अभ्यास तथा वैराग्य नामक साधन का वर्णन किया है । व्यास के अनुसार अभ्यास-वैराग्य रूपी साधन समाहित चित्त वाले साधकों के लिए है ऐसा हम पूर्व में बता चुके हैं । समाहित चित्त से वाचस्पति मिश्र का तात्पर्य अविक्षिप्त चित्त से है । विज्ञानभिक्षु योगारूढ साधक को समाहितचित्त साधक एवं उत्तम अधिकारी मानते हैं । भावगणेश का भी यही मत है । अतः यह स्पष्ट होता है कि उत्तम अधिकारी के लिए अभ्यास एवं वैराग्य नामक साधन कैवल्य प्राप्ति के लिए उपयुक्त है । अब अभ्यास एवं वैराग्य क्या है इस विषय को स्पष्ट करते हैं ।

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