( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक प्रस्थितिः एक समाजशास्त्रीय अध्ययन

    1 Author(s):  POOJA RANI

Vol -  10, Issue- 9 ,         Page(s) : 87 - 92  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

किसी भी समाज अथवा देश के उन्नयन में यदि निरपेक्ष दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो महिलाओं की भूमिका पुरूषों से कहीं भी कम दृष्टिगोचर नहीं होती है । महिलाएं देश के विकास एवं सामाजिक संरचना की रीढ़ होती है । भारत में गारों, खासी, नायर मातृ-सत्तात्मक परिवारों में पुरूषों की तुलना में स्त्रियों की प्रस्थिति ऊंची है। सम्पूर्ण भारतीय जनसंख्या में ग्रामीण महिलाओें का प्रतिशत लगभग पुरूषों के समान ही है । परन्तु जनसंख्यात्मक समानता के बाद भी इन्हें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,धार्मिक एवं सांस्कृतिक समानता प्राप्त नहीं हो सकी है । 2001 की जनगणना में महिलाओं की जनसंख्यात्मक स्थिति के प्रति नकारात्मक प्रतिमान उभरने का संकेत प्राप्त हुआ है,जो गम्भीर चिंतन एवं विचार का विषय है ।

1-चतुर्वेदी  प्रतिभा,’समाज में स्त्रियों की स्थिति और महिला सशक्तीकरण के प्रभाव’ राधाकमल मुकर्जीःचिन्तन परम्परा, वर्ष 14 अंक 2,जुलाई-दिसम्बर 2012, पृ0सं0-94
2-रफत जकिया,’भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिला मानवाधिकारः दशा और दिशा’ राधाकमल मुकर्जीःचिन्तन परम्परा, वर्ष 14 अंक 3,जुलाई-दिसम्बर 2012, पृ0सं0-30
 3-खेतान प्रभा,’उपनिवेश में स्त्री’(मुक्ति कामना की दस वार्ताएं),प्रथम संस्करण, राज कमल प्रकाशन, 2003 ,पृ0सं0-17

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