International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मन्नू भंडारी की कहानियों में स्त्री-अस्तित्व की झलक
1 Author(s): DR. REETA SINGH
Vol - 10, Issue- 3 , Page(s) : 265 - 270 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
भारतीय समास पितृसत्तात्मक है। इस पुरुष प्रधन समाज में स्त्राी का अस्तित्व महत्वहीन रहा है। स्त्राी को केवल एक सेविका की भाँति माना गया है। वह पुरुष के घर और उसके बच्चों की देखभाल करती है। स्त्राी की स्वयं की कोई पहचान नहीं है। विवाह से पूर्व वह अपने पिता के उपनाम से पहचानी जाती है। उनके संरक्षण में ही उसका जीवन व्यतीत होता है। विवाह के बाद वह पति के उपनाम से पहचानी जाती है। परिवर्तन के नियमों के बंध्न में सदैव स्त्राी को ही बाँध जाता है। पुरुष के लिए कोई भी नियम या बंध्न नहीं है।