( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दिनकर

    1 Author(s):  DR. PRAMOD KUMAR

Vol -  8, Issue- 1 ,         Page(s) : 273 - 279  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

किसी कवि की महŸाा तथा उसकी लोकप्रियता का मूल्यांकन उसके द्वारा हुए जनहित के आधार पर ही किया जा सकता है। स्वयं गोस्वामी जी ने कहा है- कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरी सम सब कहँ हित होई।। अथार्त् यश कविता और धन वही श्रेष्ठ है जिससे गंगा के समान सबका हित हो। इस अर्थ में दिनकर वस्तुतः दिनकर सा- प्रतीत होते हैं। जिस प्रकार हमारे द्वारा अपने कमरे के दरवाजे बन्द कर लेने पर भी दिन में सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से हमारा कमरा प्रकाशित रहता है और हमें अन्य प्रकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती । उसी प्रकार दिनकर की कविता बरबस हमारे मानस पर अमिट छाप छोड़ती है। कदाचित दिनकर तुलसी के बाद भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में एक है। इनकी कवितायें समसायिक हैं तथा जन जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान ढ़ूढ़ने में समर्थ हैं।

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