( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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अपराध विकास और सत्यानाश

    1 Author(s):  DR. NITU SINGH TOMAR

Vol -  7, Issue- 7 ,         Page(s) : 232 - 235  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारतीय समाज के संचालन एवं नियन्त्रण में नैसर्गिक सिद्धान्तों का समावेश है। जिसकी उपेक्षा देश-समाज हेतु घातक है। स्वतन्त्र भारत में जन-सामान्य के हितों की सुरक्षार्थ भारतीय संविधान लागू है तथा अधिकारों एवं दायित्वों के संरक्षण हेतु अनेक नियम-सहिताएं लागू हैं जिनका समय≤ पर सुधार भी होता रहता है। विकास के लिए पंच-वर्षीय योजनाएं संचालित हैं। जिनके क्रियान्वयन एवं नियमित निगरानी हेतु स्तरीय अधिकारियों-कर्मचारियों के पद-उत्तरदायित्व निर्धारित हैे। कल्याणकारी योजनाओं के लाभ की पात्रता एवं आवेदन की स्वीकृत एवं धन आबंटन की औपचारिक प्रक्रिया निर्धारित है। जिसमें शासक-प्रशासक की नियमित निगरानी एवं जबाबदेह उत्तरदायित्त्व निर्धारित है। इसके बावजूद वास्तविक दरिद्रों के कल्याण की उपेक्षा, रहीसों को दरिद्र योजनाओं के लाभ आबंटन में समर्थन एवं रहीस-लुटेरों का फर्जीबाड़ा समाज विरोधी एवं संगठित संगीन अपराध है।

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