मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद की समस्याएं
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Author(s):
DR. TRIPTI SRIVASTAVA
Vol - 7, Issue- 7 ,
Page(s) : 38 - 43
(2016 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य के आरम्भिक अंग्रेजी अनुवादों के सन्दर्भ में पाठ एवं प्रोक्ति की सर्वाधिक प्रमुख समस्या प्राच्यवाद हैण् एडवर्ड सईद ने प्राच्यवाद को एक ऐसी कारपोरेट संस्था के रूप में व्याख्यायित किया है जिसका उद्देश्य पूर्वी देशों के साथ ष्डीलष् करना हैण् इस ष्डीलिंगष् का अर्थ पूर्व पर टिप्पणियां करनेए आधिकारिक मत प्रस्तुत करनेए इसे सभ्य बनानेए सिखाने और स्थिर करने और इस पर शासन करने से हैण् और इस प्रकार ष्प्राच्यष् एक प्रत्यय मात्र है जिसे सही मायने में पश्चिम नेए पश्चिम में और पश्चिम के ही लिए वास्तविकता और उपस्थिति प्रदान की है ण्
- ओरिएंटलिज़्म : एडवर्ड सईद , राउल्टेज एण्ड केगेन पाउल , लन्दन , 1978, पृ, 3 ‘’Orientalism can be discussed and analysed as the corporate instutation for dealing with the Orient- dealing with it by making statements about it, authorizing views of it, describing it, by teaching it, settling it, ruling over it, in short orientalism as western style for dominating restructuring and having authority over the Orient’’
- वही, पृ. 5 ‘’The orient is an idea that has a history and a tradition of thought, imagery, and vocabulary that have given it reality and presence in and for the West ‘’ pg. 5
- सांग्स ऑफ कबीर : अनुवादक: रवीन्द्र नाथ टैगोर, भूमिका: एवलिन अंडर हिल , द मैकमिलन कम्पनी, न्यूयार्क, 1915 , भूमिका , पृ 3
- वही, भूमिका , पृ. 4
- Songs of kabir, review article, The North American Review , Vol-201, No:714, May 1915, University of Nothern Lowa, Pg 770 ‘’It is the purity of his mysticism that gives him significance.’’
- देखें, भक्त मीरा: बांके बिहारी, भारतीय विद्या भवन, चौपाटी, बाम्बे, 1961, भूमिका
- An Aspect of Tagore-criticism in the West : The Cloude of Mysticism, Nabeneeta Sen, Mahfil, Vol:3, No-1, 1966, Pg 9-23, Asian Study Centre, Michigan State University ‘’It was the general view in Europe that any thing Eastern must be different, enigmatic, inexplicable to what is known as ‘The Western Mind’ just because it was from the East’’
- देखें, मिडाईवल भक्ति मूवमेंट, सुष्मिता पाण्डे, कुसुमांजली प्रकाशन, मेरठ, 1989, भूमिका, एवं विकिपिडिया
- देखें, हिन्दी साहित्य :उद्भव और विकास, हजारी प्रसाद द्विवेदी, राजकमल प्रकाशन, 1952, पृ58 ’’ईस्वी सन की दूसरी या तीसरी शताब्दी में नेस्टोरियन ईसाई मद्रास प्रेसिडेंसी के कुछ हिस्सों में आ बसे थे और रामानुजाचार्य को इन्ही ईसाई भक्तों से भावावेश और प्रेमोल्लास के धर्म का सन्देश मिला. यह बात एकदम गलत है. अब इस अट्कल के सहारे स्थिर किये हुए मत पर कोई विश्वास नहीं करता, इसलिए इसका उत्तर देना बेकार है.’’
- कबीर: एस्टेटिक पोएम्स, वर्जन बाई राबर्ट ब्लाई, बेकन प्रेस, बोस्टन, 2004, प्रीफेस, पृ 19 ‘’The English of the Tagore-Under hill translation is hopeless’’
- सांग्स ऑफ द सेंट्स ऑफ इण्डिया, जॉन स्टैटेन हॉली एंड मार्क जर्गेंसमर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, ऑक्सफोर्ड इण्डिया पेपर बैक, 2008, इलेवंथ इम्प्रेशन 2012, पृ 50
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