( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तथा भारत के दृष्टि कोण में सतत् विकास (SUSTAINABLE DEVELOPMENT) की सहभागिता

    1 Author(s):  LAXMAN JAISWAL

Vol -  7, Issue- 2 ,         Page(s) : 52 - 56  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मानव अतितकाल से ही प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहा है। वह अनवरत अपनी पूर्वजों द्वारा छोड़ी गयी भौतिक व सांस्कृतिक उपादानों को संजोने एवं सवारने का निरन्तर प्रयास करता चला आ रहा है। मानव की मूल-भूत आवश्यकता कपड़ा-रोटी तथा मकान है, जिसकी प्राप्ति हमें प्राकृतिक अवयवों से होते रहते है। मानव एक महत्वाकांक्षी प्राणी है। और वह शुरू से ही अपनी विलासिता (Luxzary) सामग्री की वृद्धि हेतु निरतर प्रकृति का दोहन करता चला आ रहा है। तथा ग्लोबल वार्मिंग इस बात का प्रतीक है कि हम लोग पृथ्वी के वायुमण्डल (Atmosphere) की वहन क्षमता से ज्यादा उस पर बोझ लाद रहे हैं। तथा विश्व की पूरी मानवता ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न सभी जोखिमों से ग्रसित है।

  1. आर्थिक समीक्षा 2014-15-टवस.प्प् पृ0 120
  2. आर्थिक समीक्षा 2014-15-टवस.प्प् पृ0 121
  3. आर्थिक समीक्षा 2014-15-टवस.प्प् पृ0 122
  4. आर्थिक समीक्षा 2014-15-टवस.प्प् पृ0 123
  5. भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्र पुरी- संस्करण 2011- पृ0 39
  6. भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास छब्म्त्ज् . कक्षा-11, पृ0 177
  7. भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास छब्म्त्ज् . कक्षा-11, पृ0 176
  8. भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्र पुरी पृ0 39
  9. योजना मई 2012 पृ0 3
  10. योजना मई 2012 पृ0 17
  11. आर्थिक समीक्षा 2014-15 टवस.प्प्. 130
  12. United Nations Development Program; Human Development Report 1996 (New Delhi) Box 2.11  पृष्ठ 64

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