( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 813    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

निर्गुण भक्ति साहित्य का विकास

    1 Author(s):  SHIVAKUMAR CS HADAPADA

Vol -  6, Issue- 5 ,         Page(s) : 198 - 208  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

हिन्दी साहित्य के मध्यकाल (1375 – 1700) में भक्ति की दो धाराएँ – सगुण तथा निर्गुण प्रवाहित हुई। सगुण धारा के अन्तर्गत राम-कृष्ण भक्ति की शाखाएँ आती हैं, निर्गुण के अन्तर्गत सन्त तथा सूफियों का काव्य आता हैं। आचार्य शुक्ल ने नामदेव एवं कबीर द्धारा प्रवर्तित भक्ति-धारा को निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा की संज्ञा से अभिहित किया हैं। डॉ.हजारी प्रसाद द्धिवेदी ने इसे निर्गुण भक्ति साहित्य तथा डॉ.रामकुमार वर्मा ने इसे सन्त-काव्य-परम्परा का नाम दिया हैं। निर्गुण भक्ति साहित्य पर ध्यान देने से पहले हमें निर्गुण शब्द के अर्थ को समझना आवश्यक हैं।

  1. हिन्दी साहित्य का इतिहास दृ आचार्य रामचन्द्र शुक्लए विश्वभारती प्रकाशन नागपुर।
  2. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास ;प्रथम खण्डद्ध दृ गणपति चन्द्र गुप्तए लोकभारती प्रकाशन इलाहाबाद।
  3. हिन्दी साहित्य दृ युग और प्रवृत्तियाँ दृ डॉण्शिवकुमार शर्माए अशोक प्रकाशन दिल्ली।
  4. प्राचीन काव्य के प्रतिनिधि कवि दृ डॉण्मान्धाता रायए राजीव प्रकाशन इलाहाबाद।
  5. जायसी पर्ववर्ती हिन्दी.सूफी कवि और काव्य दृ डॉण्सरला शुक्लए लखनऊ विश्वविद्यालय 2013।

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details