पनिका जनजाति में सामाजिक व आर्थिक संगठन के बदलते प्रतिमान का मानव षास्त्रीय मूल्याकंन
1
Author(s):
RAM SINGH
Vol - 6, Issue- 7 ,
Page(s) : 115 - 120
(2015 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
जन जातियों का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि यहाँ की मानव सभ्यता का। देष के प्रायः प्रत्येक भाग में ये जन जातियाँ किसी न किसी रूप में पायी जाती है। भारत में आर्यो के आगमन के समय भी यहाँ की आदिम जातियों की एक उन्नत सभ्यता एवं संस्कृति थी ,और साथ ही साथ उनकी एक विषिश्ट पहचान। इसमें वे सभी जातियाँ षामिल हैं, जिन्हें आज हम वनवासी, आदिवासी, गिरिजन, कबीले, आदिम जाति, व जनजाति आदि के रूप में चिन्हित करते है। इनके पूर्वजों ने आर्यो से डटकर मुकाबला किया, किन्तु उनकी उन्नत सामरिक षक्ति के आगे ये टिक नहीं सके, और दुर्गम पर्वतों एवं वनों मंे इन्हें षरण लेनी पड़ी।
- केसरी,डाॅ.अर्जुनदास , 2009 विन्ध्यांचल मण्डल समग्र, रार्वटसगंज, यू.पी., लोकरूचि प्रकाषन
- क्रुक विलियम, 1896, द ट्राइब्स एण्ड़ कास्टस आॅफ द नार्थ वेस्टर्न इंडिया।
- केसरी ,अर्जुनदास 1983, आदिवासी जीवन, लोकरूचि प्रकाषन रावर्तसगंज, यू.पी.।
- गुप्ता, रमणिका, 2007 आदिवासी लोक, अंष प्रकाषन, गाँधी नगर, दिल्ली।
- मजूमदार, डी.एन. 1965, छोर का एक गाँव: नई दिल्ली, एषिया पब्लिसिंग हाउस।
- सोनकर, आर.डी. 2006 उत्तर की आदिम जातियाँ, प्रकाषन केन्द्र ,लखनऊ।
- सिंह, के.एस. 2005, प्यूपल आॅफ इंडिया: उत्तरप्रदेश, नई दिल्ली, मनोहर पब्लिशर (एन्थोपाॅलोजिकल सर्वे आॅफ इण्डिया)
- हसन, अमीर, 1989 उत्तर प्रदेष की जनजातियाँ, नई दिल्ली, नेषनल पब्लिसिंग हाउस।
- उत्तर प्रदेष, जनसंख्या- 2011 से प्राप्त आॅकड़े।
|