( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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हिन्दु समाज में नारी का स्थान

    1 Author(s):  DR. NUTAN RANI

Vol -  5, Issue- 8 ,         Page(s) : 422 - 426  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

हिन्दु समाज का साहित्यक इतिहास वैदिक काल से अनुप्राणित है, क्योंकि प्राचीन कालीन आर्य ही आदि काल से हिन्दु माने जाते है। वैदिक काल में नारी का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण था उस समय उनकी षिक्षा पुरूशों के समान थी, यदि पुरूश अध्याायपक, उपाध्याय आचार्य, पुरोहित मुनी और ऋर्शि पद को प्राप्त हो सके थे, तो वैदिक साहित्य में रची के लिए भी अध्यापिका उपााध्याय, आचार्या पुरोहिता मुनि ओर ऋर्शि का पद पाये जाते है अन्दालसा और विदुला ऐसी ही अध्यापिकायें थी, जिन्होने अपने पुत्रों को षुद्वोसि, वुद्वोसी निरंजनोंसि,संसार मायापरिस्थति परिवर्जितोसि अर्थात हे पुच तूधीर है वीर है विषुद्व है, संसार की मायोसेरहित है तथा यदर्थ क्षत्रियासूति कालोडय समुपागत अर्थातहे पुत्र । जिस दिन के लिए दीरक्षयाणी तुम्हें जन्म देती है, वह समय आ गया है, इस प्रकार कहकर युद्व के लिए प्रेरणा देती है। मातृमान, पितृमान आचार्यमान, पुरूशो वेद इत्यादि प्रमाणों से सिद्व है कि पुत्र का सर्व प्रथम गुरू आता ही है।

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