1. भारतीय संस्कृति और साध्ना, भाग-1, पृ. 303
2. कुटिलाघªी कुण्डलिनी भृजघªी शक्तिरीश्वरी।
3. मुण्डल्यरून्ध्ती चैते शब्दा पर्यायवाचकाः।।
हठयोगप्रदीपिका, 3/105
4. मूलाधरे तु या शक्तिर्भुजगाकाररूपिणी।
जीवात्मा परमेशानि तन्मध्ये वत्र्तते सदा।।
मातृकाभेदतन्त्रा
5. तन्त्रासाध्नासार, पृ. 26
6. शण्डिल्योपनिषद्, अध्याय-1, योग कुण्डलिनी उप. अ. 1
7. तन्त्रासाध्नासार, पृú 27
8. विरुपाक्षप×चाशिका, 1/2
9. हठयोगप्रदीपिका, 3/1
10. हठयोगप्रदीपिका, श्लोक 4
11. हठयोगपद्रीपिका, 3/113
12. षट्चक्रनिरूपणम् के श्लोक 4 का विवरण
13. हठयोगप्रदीपिका, 3/113
14. षट्चक्रनिरूपणम्, श्लोक 9
15. सौन्दर्यलहरी, श्लोक, 10
16. षट्चक्रनिरूपणम्, श्लोक 10
17. शारदातिलक, 1/53-57
18. हठयोगप्रदीपिका, 4/10-11
19. कन्दोध्र्व कुण्डली शक्तिः सुप्ता मोक्षाय योगिनीम्।
बन्ध्नाय च मूर्खाणां यस्तां वेत्ति स योगवित््।
कुण्डली कुटिलाकारा सर्पवत्परिकीर्तिता।
स शक्तिश्चालिता येन स मुक्तो नात्रा संशयः।।
हठयोगप्रदीपिका 3, 107-108
20.(क) मूालधरे मूलविद्यां विद्युत्कोटिसमप्रभाम्।
सूर्यकोटिप्रतीकाशां चन्द्रकोटिद्रवां प्रिये।।
विसतन्तुस्वरूपां तां बिन्दुत्रिकलयां प्रिये।
उफध्र्वशक्तिनियतने सहजेन वरानने।।
ज्ञानार्णाव तन्त्रा, 3/2, 3
(ख) शक्तिः कुण्डलिनी नाम विसतन्तुनिभा शुभा।
मूलकन्दपफणाग्रेण दृष्ट्वा कमलकन्दवत्।।
सौन्दर्यलहरी ;आनन्दलहरी, श्लोक 9 की अरुणामोदिनी टीका में उ(ृतद्ध
21. मूलाधरे आत्मशक्ति। कुण्डली परदेवता।
शयिता भुजगाकारा सार्थत्रिवलयान्विता।
यावत्सा निद्रिता देहे तावज्जीवो पशुर्यथा।
ज्ञानं न जायते तावत् कोटियोगं समभ्यसेत्।।
घेरण्डसंहिता, 3/43-44
22. कन्दोध्र्वे कुण्डलीशक्तिरष्टध कुण्डलाकृतिः।
ब्रह्मद्वारमुखं नित्यं मुखेनाच्छाद्य तिष्ठति।
कुण्डलिन्यां समुद्रभूता गायत्राीप्राणधरिणी।
प्राणविद्या महाविद्या यस्तां वेत्ति स वेदविद्।।
गोरक्षप(ति, 1/46-47
23. ध्यायेत्कुण्डलिनी देवीं स्वयम्भूर्लिगसंस्थिताम्।
श्यामां सूक्ष्मां सृष्टिरूपां सृष्टिस्थितिलयात्मिकाम्।।
विश्वातीता ज्ञानरूपां चिन्तयेदूध्यर्ववाहिनीम्।
हुँकारवर्णसम्भूतां कुण्डली परदेवताम्।।
शाक्तानन्दतरिघõणी, 25