( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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गायन एवं वादन की बंदिशो में पारस्परिक संबंध

    1 Author(s):  DR RAHUL SWARNKAR

Vol -  5, Issue- 8 ,         Page(s) : 54 - 58  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

शास्त्रीय संगीत से निबद्ध रचना को ही बंदिष कहने की प्रथा है। भातखंडे जी ने बंदिष के लिए ‘‘चीज‘‘ शब्द का प्रयोग किया है, जिसका शाब्दिक अर्थ महत्वपूर्ण वस्तु, अलंकार या गहना है। ‘‘ बंदिष’’ षब्द पर विचार करें तो देखेगे कि बंदिश पारसी षब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘‘बांधने की क्रिया का भाव ’’शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत निबद्य और अनिबद्य दो तरह कि रचनाओं का अस्तित्व दृष्टिगोचर है। यहाॅं केवल निबद्य रचनाओं को ही बंदिषांे के रूप में मान्यता प्राप्त है इसीलिए निबद्य के अंतर्गत रखते हुए बंदिषांे का वर्णन किया जाना ही उचित है। वह स्वर रचना या गीत जो स्वर , ताल , लय इत्यादि तत्वों में बांधा हो उसे निबद्य संगीत कहते हैं।षास्त्रीय संगीत कि विविध षैलियांे मे ंउत्पत्ति से ही संगीत का अर्थ गायन , वादन तथा नृत्य के समूचित रूप से लिया जाता है जिसमंे गीत को सर्वप्रथम महत्व दिया जाता है एवं अन्य सभी को गीत पर आधारित माना गया है। वास्तव मंे बंदिष के द्वारा ही राग अथवा ताल के अस्तित्व को समझा जा सकता है। इन बंदिषांे के द्वारा ही संगीत की परंपरा को गुरूआंे द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रखा गया है।

1. कौर भगवंत, संगीत प्रदर्षन, निर्मल पब्लिकेषन दिल्ली 94 ,पृ 36 
2. शर्मा स्वतंत्र, सौदर्य , रस एवं संगीत , अनुभव पब्लिकेषन इलाहाबाद, पृ-63 
3. वही पृ 64
4. वही पृ 65
5. वही पृ 64 
6. वही पृ 64 
07. कौर भगवंत, संगीत मार्गदर्षन , निर्मल पब्लिकेषन दिल्ली -94 , पृ -36 
08. वही पृ 32 
09 गौरी डाॅ.,तंत्री वाद्य सितार एवं वादनीय बंदिषें, निर्मल पब्लिकेषन शाहदरा दिल्ली-94 पृ -76
10. कर्ण नागेष्वर लाल , कथक के साथ तबला संगति , कनिष्क पब्लिकेषन दिल्ली पृ.208 
11. गौरी डाॅ., तंत्रीवाद्य सितार एवं वादनीय बंदिषें, निर्मल पब्लिकेषन शाहदरा दिल्ली-पृ.76
12. कर्ण नागेष्वर ,कथक के साथ तबला संगति , कनिष्क पब्लिकषर्स दिल्ली ,पृ. 209 
13. मिश्र विजयषंकर, भारतीय संगीत के नए आयाम, कनिष्क पब्लिषर्स नई दिल्ली, पृ.21
14. शर्मा शांतनु, प्रतिष्ठित सितार सरोद वादकों की साधना और संघर्ष कनिष्क पब्लिकेषन पृ.4 
15 वही पृ 13 
16. महाडिक प्रकाष, भारतीय संगीत के तंत्री वाद्य, म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, पृ.109
17 मिश्र विजयषंकर, भारतीय संगीत के नए आयाम, कनिष्क पब्लिकेषन नई दिल्ली पृ.21 
18. कौर भगवन्त, संगीत मार्ग दर्षन, निर्मल पब्लिकेषन दिल्ली 94, पृ.37 

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