International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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‘‘बौद्ध धर्म’ और ‘जाति व्यवस्था’
2 Author(s): MADHU RANI , DR. SARVESH KUMAR
Vol - 5, Issue- 2 , Page(s) : 785 - 792 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
इतिहास, ध्र्म और जाति को लेकर मेरे कुछ ‘प्रश्न’ और जिज्ञासाएं है जिनको मैं आपसे बाँटना चाहती हूँ। ये मेरे अध्ययन मनन की उपज है जिन्हें मेरे समय समाज ने पैदा किया है। वैसे तो ‘बौ( ध्र्म’ और ‘जाति व्यवस्था’ ये दोनों विषय या तो साध्ु, सन्त और महागुरू के बोलने के लायक हैं या पिफर किसी राजनीतिज्ञ, समाज सुधरक व क्रांतिकारी आदि के मनमापिफक इस्तेमाल के। मेरे जैसे अकादमिकों का इस पर हक-अध्किार नहीं माना जाता रहा है। अकादमिक जगत में भी यह विषय अछूत की हैसियत रखते हैं क्योंकि अकादमिक लोगों के लेखे यह अध्ययनेतर विषय हैं, ध्र्म से उन्हें अपफीम की गंध् आती है और उसका कोई सामाजिक भूमिक महत्ता हो भी सकती है, यह उनकी सोच से परे है। जाति उनके हिसाब से मध्यकाल व सामंती दौर का अवशेष ;पफासिलद्ध है जो समय के साथ स्वतः ही नष्ट हो जायेगा।