International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य की शैलियाँ
1 Author(s): DR. BRIJENDRA PANDEY
Vol - 11, Issue- 1 , Page(s) : 629 - 634 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
इन्सान और उसकी कला का संबंध वस्तुतः मानवीयता लिए हुए होता है. कला के बगैर इन्सान का अस्तित्व कुछ नहीं है. यदि अपने आसपास से मनुष्य समाज कला को बेदख़ल कर दे तो वह ख़ाली बर्तन तो बनेगा ही साथ ही साथ वह अपने अस्तित्व के लिए भी बड़ा संकट खड़ा कर देगा. कविता, कहानी, उपन्यास नाटक आदि यह साहित्य के भीतर मानी जाने वाली लेखन संबंधी कलाएं हैं तो वहीं चित्रकारी का इतिहास मनुष्य जितना पुराना समझा जाना चाहिए. कम से कम जब से मनुष्य ने चिन्हों को समझने और बनाने की कोशिश की, वे अनजाने में चित्रकारी के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा था. छोटे छोटे गुटों में घूमने वाले लोगों ने सुरक्षा के नज़रिए से अपने को संगठित किया और स्थायी जीवन के आराम के चलते उन्होंने अपना यायावर जीवन बदलने का प्रयास किया. आज भी यायावर जीवन के निशान जगह जगह पर मिलते हैं और ख़ुद मनुष्यों में इसके रुझान दिखाई भी देते हैं.