International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मुक्तक काव्य सुरबाला में विरह प्रेमाग्नि का चित्रण
1 Author(s): DR. KAILASH CHANDRA DIVAKAR
Vol - 11, Issue- 4 , Page(s) : 313 - 319 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
‘‘सुरबाला’’ कवि के हृदय की करूण पुकार है। इस काव्य में राम आसरे गोयल प्रेम के (प्यासे चातक) पपीहे है। अपने प्यार को जो खो देता है वह बहुत तड़प से गुज़रता है। ऐसी तड़प मूलतः सूफियों में पायी जाती है। यदि हम मलिक मुहम्मद जायसी के ‘‘पदमावत’’ और कासिम शाह का ‘‘हंस जवाहिर’’ देखें तो पायेगें कि प्रेम में प्रेमी ऐसा विरही दीवाना हो जाता है कि कोयल और कौआ का कालापन भी विरह की आग में जलने अथवा विरह का धुँआ लगने से माना गया है।