( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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विवेकी राय में निबंधों का शिल्प संयोजन

    1 Author(s):  SWATI PURWAR

Vol -  1, Issue- 1 ,         Page(s) : 333 - 335  (2009 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

निबंधकार जिस अस्तित्व बोध को लेकर चलता है जिसे अपने व्यक्तित्व के साथ उपस्थित होता है ललित निबंध में आकर वह कहीं भी विखंडित नहीं होता। उसका व्यक्तित्व उसके विचार अनुभूतियों उसके प्रभावन्विति स्मषतियां और उसकी गूंज- अनुगूंज उसके समूचे परिवेश को साथ लेकर चलते हुए अपने होने का आभास देती रहती हैं । इस विषेषत्व की अभिव्यक्ति सामान्य बोलचाल के ढंग से की जाती है लेखक या कवि का सरोकार भाषा से नहीं शब्दों से अधिक होता है। शब्दों से सरोकार के कारण ही ललित - निबंधकार सर्वकालिक और सार्वभौमिक परिवेश का भोक्ता होता है।

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