International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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गीतगोविन्द में दार्शनिक तत्त्व भक्ति : एक चिन्तन
1 Author(s): BALRAM YADAV
Vol - 12, Issue- 6 , Page(s) : 45 - 52 (2021 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
संस्कृत वाङ्मय में दार्षनिक तत्त्व का बाहुल्य है । संस्कृत दर्षन-प्रधान भाशा है ऐसा कहना अतिषयोक्ति न होगा। सामान्य अर्थ में दर्षन का तात्पर्य ‘देखना’ है। परन्तु व्यापक अर्थ में या दार्षनिक परिप्रेक्ष्य में दर्षन का अर्थ जीवात्मा को परमात्मा से साक्षात्कार होना या जीवात्मा को परमात्मा का सामीप्य/नैकट्य प्राप्त करना । दर्षन षब्द की निश्पत्ति इस प्रकार है - दृष्धातु से ल्युट् प्रत्यय (दृष् ल्युट्/दृष् यु(अन)/दर्श् अन) दर्षन।