International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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प्रसाद और भारती के काव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य बोध
1 Author(s): SUNITA DEVI
Vol - 1, Issue- 1 , Page(s) : 270 - 279 (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
सृष्टि के प्रारम्भ से ही प्रकृति और मानव का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहा है। प्रकृति मानव की चिर सहचरी है जो उसके जीवन की अनेक भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति करके अंतरंग अनुभूतियों को भी अपने रूप-सौन्दर्य से प्रभावित करती हुई उन्हें चमत्कृत करने की अद्भुत क्षमता रखती है, क्योंकि, दृश्य प्रकृति मानव-जीवन को अथ से इति तक चक्रवार की भांति घेरे रहती है। प्रकृति के विविध कोमल-कठिन, सुन्दर-विरूप-व्यक्त रहस्यमय रसों के आकर्षण-विकर्षण ने मनुष्य की बुद्धि और हृदय को कितना परिष्कार और विस्तार दिया हे, इसका लेखा-जोखा करने पर मनुष्य प्रकृति का सबसे अधिक ऋणी सिद्ध होगा। वस्तुतः संस्कार क्रम में मानव-जाति का भाव-जगत् ही नहीं उसके चिंतन की दिशाएं भी प्रकृति के विविध रूपात्मक परिचय तथा उससे उत्पन्न अनुभूतियों से प्रभावित है।