International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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विवेकानन्द की सार्वभौमिक धर्म की अवधारणा
1 Author(s): DR. ARUN KUMAR
Vol - 11, Issue- 10 , Page(s) : 351 - 353 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
अमरीका के षिकोगा षहर में 1893 में हुए धर्म - संसद की समाप्ति के पष्चात स्वामी रामकृष्ण परमरंस के विष्वाविश्रुता षिष्य स्वामी विवेकानंद के बारे में किसी के यह पूछने पर कि भारत का एक अज्ञात साधु जिसने न तो कोई विद्धतापूर्ण निबंध पढ़ा और न जिसके पास कोई प्रषंसात्मक परिचय पत्र था इतना गहरा प्रभाव कैसे डाल सका उत्तर मिला था इसलिए कि जहाँ अन्य सारे प्रतिनिधि अपने-अपने ईष्वर की चर्चा करते रहे, केवल विवेकानंद ने सबके ईष्वर की बात की यह उत्तर निष्चत ही विवेकानंद के चिंत्रण की सार्वभौमिकता का परिचय देता है। वास्ताव में विवेकानंद ने अपने दर्षन की स्थापना मात्र दर्षन के लिए नहीं की थी बल्कि उनका उद्येष्य सार्वभौमिक धर्म की स्थापना करना था।