International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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विविध भाषाओं में नागार्जुन-काव्य की जनवादी चेतना
1 Author(s): REENA YADAV
Vol - 11, Issue- 3 , Page(s) : 356 - 364 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
नागार्जुन स्वभाव से ही घुमक्कड़ प्रकृति के थे। यात्रा उनके लिए अत्यंत सुखद अहसास था। यात्रा के लिए इनकी तैयारी भी इन्हीं के अनुरूप फक्खड़ थी। बस गठरी बाँधी और परिंदे की भाँति उड़ चले। इसी यायावरी स्वभाव के कारण काव्य-जगत बाबा नागार्जुन को ’यात्री’ नाम से भी सम्बोधित करता है। इन यात्राओं के कारण उनका अनुभव-क्षेत्र अत्यंत व्यापक हो गया है। उनके साहित्य का असीमित गगन इन्हीं यात्राओं के धरातल पर क्षितिज से मिलता है। वे जमीन में धँसे साहित्यकार थे। ज़िन्दगी की पाठशाला से उन्होंने दीक्षा प्राप्त की थी।