ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन का योगदान
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Author(s):
PUSHPANJALI KUMARI
Vol - 11, Issue- 3 ,
Page(s) : 50 - 54
(2020 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
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Abstract
किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक प्रगति ही वहाँ की चुनौती होती है, चाहे वह अविकसित हो या विकासशील। हालाकि आर्थिक विकास का सम्बन्ध मुख्यतया अल्पविकसित देशों से लगाया जाता है जहाँ निर्धनता, बेकारी, पुंजी का आभाव, निम्न जीवन-स्तर असंतुलित विकास तथा आर्थिक पिछड़ापन इन देशों की मुख्य समस्याऐं है। यही कारण है कि आज विश्व का प्रत्येक अल्पविकसित देश अपनी स्थिति में सुधार करना चाहते है ताकि अपने बच्चों की जिन्दगी को खुशहाल बना सकें। वास्तव में आज समाजिक एवं आर्थिक विकास के दौड़ में पाश्चात्य देश जहाँ विकास की पराकाष्ठा प्राप्त किये हुये है, वहीं विकासील देश अपनी अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक पृष्ठभूमि का रूपान्तरण विकसित देशों के अनुरूप करने में लगे है। इन विकासशील देशों में भारत अपनी समाजिक-आर्थिक एवं भौतिक क्षमताओं में अग्रणी होते हुए भी विकास की उच्चतम सीढ़ी पर पहुँचने में प्रयासरत है। आज भी भारत की 74 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण जीवन से जूड़ी है, इसलिए देश की आर्थिक प्रगति ग्रामीण विकास पर आधारित है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी कहा कि ‘‘भारत की आत्मा गाँवों में वास करती है, चूँकि भारत गाँवों में वास करती है, इसलिए ग्रामीण विकास ही संतुलित भारत का आाधार होगा।‘‘ किन्तु ग्रामीण अर्थव्यवस्था ऋणग्रस्ता, जो परम्परागत मुख्य समस्या बनी हुई है
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