International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मृदभांडो का कालक्रम से संबध
1 Author(s): RAJEEV YADAV
Vol - 10, Issue- 6 , Page(s) : 195 - 198 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
पुरातत्व में मृदभाण्डों का महत्व तिथिकरण के लिये महत्वपूर्ण है। टाइपोलाॅजी का सर्वप्रथम प्रयोग फ्लिण्डर्स पेट्री ने सर्वप्रथम मिश्र में किया। भारत में मृदभाण्डों की मद्द से तिथिकरण की उपयोगिता सर्वप्रथम सर जानमार्शल ने भीर के टीले के उत्खनन में किया तथा एन0 बी0 पी0 डब्लू0 का स्तर निर्धरित किया। इसी प्रकार हडप्पा के उत्खनन से विशेष प्रकार के हडप्पाई मृदभाण्डों की प्राप्ति हुई। हस्तिनापुर के उत्खनन कर्ता बी0बी0 लाल ने पी0 जी0 डब्लू0 का स्तर निधारित किया। आर0सी0 गौड के द्वारा अतरंजीखेड़ा के उत्खनन से ओ0 सी0 पी0 स्तर की सर्वप्रथम पहचान की गई। महाराष्ट्र से जोर्वे संस्कृति के पात्र प्राप्त हुए। मध्य गंगा घटी के मैदान में मृदभाण्डों का प्रचलन नवपाषाण काल से मिलने लगता है। चिरांद, कोल्डीहवा, मगहरा लेचारिया बगहीखोर दक्षिण भारत ने ताम्र पाषाणिक संस्कृतियांे की पहचान विशेष प्रकार बी0आर0डब्लू0 से सम्बन्धित की गई है। लोथल रंगपुर में परवर्ती हड़प्पा में चमकीले लाल रंग की पात्र परमपरा दिखाई पड़ती है। इसके अलावा अनेक प्रकार की पात्र परमपरायें भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों की दिखलाई पड़ती है।