( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 359    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

विकासशील देशो में सुशासन

    1 Author(s):  DR. LATIKA CHANDEL

Vol -  10, Issue- 5 ,         Page(s) : 175 - 179  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

विश्व के विकासशील हिस्सो में अब ध्यान केन्द्र सरकार और राजनिती की रुढिगत अवधारणाओं से हटकर उत्तम अभिशासन उसकी विशेषताओ और अनिवार्यताओ की और हो गया है परंतु आधुनिक लोक प्रशासन की शब्दावली में ये शब्द 1990 के दशक में प्रविष्ट हुआ। विश्व बैंक के एक दस्तावेज में सुशासन शब्द का प्रयोग एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में किया गया है जिससे शासन शक्ति का प्रयोग राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक संसाधनो का प्रबंध करने के लिये किया जाता है। आधुनिक भारत में संविधान के माध्यम से सुशासन की अवधारणा को स्वाभाविक वैधता प्रदान की गई है। सुशासन में विद्यमान अनेक विशेषताएं जैसे कि, सहभागिता, विधि का शासन, पारदर्शिता, अनुक्रियाशीलता, आम सहमति, न्याय संगत, प्रभावशीलता, जवाबदेही और सामरिक दृष्टी की वजह से इसका महत्व बढ जाता है। वर्तमान में समाज, वैज्ञानिक, राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय संस्थायें तथा स्वंय नागरिक समाज इस बारे में चिंतित है कि भारत में सुशासान की व्यवस्था किस प्रकार सुचारु रूप से चले। ये कहना अनुचित न होगा कि भारत में गंणतंत्र के 6 दशक बाद भी सुशासन की अवधारणा व्यवहार में नही है। अनेकता में एकता की पहचान लिए भारत में आज सुशासान को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, सामप्रदायिकता तथा रुढीवादिता जैसी अनेक चुनौतियों का सामना करना पङ रहा है। 20वीं सदी के अंतिम दशकों में राजनैतिक अस्थिरता, क्षेत्रिय एवं साम्प्रदायिक दलों के उदय ने राजनैतिक वातावरण को बहुत दुषित किया है जिससे सुशासन को अपने अस्तित्व के लिये अनेक मुश्किलों का सामना करना पङ रहा है , सुशासन के आधार को मजबूत करने के लिये भारत में कुछ सुधार की आवश्यकता है। सुशासन की प्राशमिकता को समझते हुए भारत में संवैधानिक और प्रशासनिक सुधारों को मान्यता देनी चाहिये। संविधान के 73 वें एवं 74 वें संशोधन के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को जिस तरह स्थापित किया गया है, उसे गुंणवत्ता प्रदान करनी चाहिये। व्यवस्थापिक एवं कार्यपालिका की तरह न्यायपालिका को भी सुशासन के हित में जवाबदेह बनाना चाहिये। लोक सेवा आर्पूति की गुणवत्ता में सुधार आने से सुशासन का आधार मजबूत होगा। सुशासन तभी सुशासन है जब इसमें सभी नागरिकों के हितों का ध्यान रखा जाता है । और यह तभी संभव है जब सरकार गरीबो बच्चो वृद्धजनों महिलाओं आदि के अधिकारों की भी रक्षा करे और इनके कल्याण के लिए भी विभिन्न योजनाये संचालित करे। सुशासन में सरकार तक नागरिको की सहज पहुच भी अन्तर्निहित होती है।

“Governance is defined as the manner in which power is exercised in the management of a country's economic and social resources for development”.
“Good governance is central to creating and sustaining an environment which fosters strong and equitable development and it is an essential complement to sound economic policies”.
“The concept of good governance derives its relevance in the context of misgovernanace which includes non feasance, over feasance and malfeasance.”
David Osborne and Ted Gaebler, Reinventing Government (London1992). By good governance was meant at that time sound development management.

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details